गौरक्षा के लिए चमड़ा उद्योग की नौकरियों का बलिदान दिया जा सकता हैः सुब्रमण्यम स्वामी
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
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ऐसे समय में जब भारत में बेरोज़गारी की दर बढ़ रही है, भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी गायों के लिए ज़्यादा चिंतित हैं.
बीबीसी से बात करते हुए भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने माना कि बेरोज़गारी एक बड़ा मुद्दा है लेकिन गायों की सुरक्षा के लिए चमड़ा और गोमांस उद्योग की नौकरियों का बलिदान दिया जा सकता है.
बीबीसी के कार्यक्रम 'वर्क लाइफ़ इंडिया' में उन्होंने कहा, "बेरोज़गारी पूरी तरह से छोटे और मझले उद्योगों के बंद होने की वजह से बढ़ी है. यह क्षेत्र सबसे ज़्यादा नौकरियां देता है. यह पूरी तरह से ऊंची ब्याज दरों की वजह से हुआ है,
जिसे रिज़र्व बैंक गवर्नर जैसे अधिकांश पश्चिम से प्रभावित हमारे पदाधिकारियों ने शुरू किया था. इनका गाय से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन अगर बात लोगों को बेरोज़गारी से बाहर लाने और न केवल संवैधानिक बल्कि हमारी आध्यात्मिक प्रतिबद्धता के सम्मान (गायों की रक्षा करना) के बीच की है तो मैं उस बलिदान को प्राथमिकता देना चाहूंगा."
सुब्रमण्यम स्वामी का यह बयान चुनावी समर के बीच आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल की चाहत में देशभर में घूम-घूमकर रैलियां कर रहे हैं.
आलोचक नरेंद्र मोदी को इस बात के लिए घेर रहे हैं कि वो अपने वादे के अनुसार युवाओं के लिए उतना रोज़गार नहीं मुहैया करा सके.
बढ़ती बेरोज़गारी
सेंटर फॉर मॉनीटिरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार भारत में बेरोज़गारी की दर इस साल फ़रवरी में बढ़कर 7.2% हो गई है, जो सितबंर 2016 के बाद सबसे अधिक है. हालांकि सरकार ने इन आंकड़ों को ख़ारिज कर दिया है.
भारत का चमड़ा उद्योग क़रीब 25 लाख लोगों को रोज़गार देता है. लेकिन गोरक्षा के नाम पर दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों के ज़रिए की जाने वाली हरकतों के कारण समाज में नफ़रत बढ़ रही है. पशु व्यापारियों को निशाना बनाया गया और कई लोगों की हत्या भी कर दी गई, जिसके कारण उनके व्यापार को काफ़ी घाटा हुआ.
कानपुर के चमड़ा उद्योग में काम करने वाले रिज़वान अशरफ़ का कहना है कि इस क्षेत्र में काम करने वाले डरे हुए हैं. उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी की टिप्पणी पर भी चिंता ज़ाहिर की.
रिज़वान ने बीबीसी से कहा, "वो केवल उस समुदाय को देख रहे हैं जो यह काम कर रहा है लेकिन इसके दूसरे पक्ष को वो नहीं देख पा रहे हैं. चमड़ा उद्योग पूरी तरह से पशुओं पर आधारित है, जिन्हें मांस के लिए मार दिया जाता है या फिर वो प्रकृतिक मौत मरते हैं. हम जूते और बैग बनाने के लिए उनके चमड़े का इस्तेमाल करते हैं. हमलोग प्रदूषण को भी रोकते हैं. अगर मरी हुई गाय खुले में सड़ेगी और उससे बीमारियां फैलेंगी तो क्या होगा?
उनका दावा है कि पिछले पांच सालों में व्यापार में 40 फ़ीसदी तक की गिरावट देखी गई है और इस दौरान क़रीब दो लाख लोग बेरोज़गार हुए हैं.
दिलचस्प बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने 'मेक इन इंडिया' अभियान के ज़रिए चमड़ा उद्योग में निर्यात को बढ़ावा देने का वादा किया था.
उन्होंने 2020 तक इस उद्योग के निर्यात का लक्ष्य नौ अरब डॉलर रखा था.
सुब्रमण्यम स्वामी ने बीबीसी से कहा, "मुझे नहीं पता कि चमड़ा उद्योग के लिए प्रधानमंत्री ने जो विशेष लक्ष्य तय किया है वो उचित है या नहीं. मुझे लगता है प्रधानमंत्री को इस पर विस्तार से सोचना चाहिए."
उन्होंने यह भी कहा कि गौरक्षा के नाम पर हत्याओं को रोकने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है.
गाय के नाम पर हिंसा
गाय के नाम पर हिंसा की घटनाओं का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. हालांकि इंडियास्पेंड संस्थान के जुटाए आंकड़ों के मुताबिक़ 2015 के बाद ऐसी घटनाओं में क़रीब 250 लोग जख़्मी और 46 लोगों की मौत हो चुकी है.
भारतीय संविधान के मुताबिक़ राज्य सरकारें गौहत्या पर नीतियां बना सकती हैं. देश के 17 राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है. इन राज्यों में देश की 51 फ़ीसदी आबादी रहती है.
इनमें से अधिकतर में गोरक्षा क़ानून लागू है, जहां गाय और भैंस के मांस खाने पर भी रोक है.
सुब्रमण्यम स्वामी गोहत्या करने वालों को फांसी देने की वकालत करते हैं और उन्होंने इस बारे में पिछले साल राज्यसभा में एक बिल भी पेश किया था, जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया था.
वर्क लाइफ़ इंडिया कार्यक्रम में मौजूद रॉयटर्स के दक्षिण एशिया ब्यूरो चीफ़ मार्टिन हॉवेल ने कहा, "इसका समाधान निकालना बहुत मुश्किल है. यह धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मामला है. लेकिन मुझे लगता है कि सरकार जो भी नीति बनाती है, उसके लिए एक क़ानूनी और पुलिस ढांचे की ज़रूरत होती है ताकि ऐसी हिंसाएं रोकी जा सके."
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